मेरा उम्र भर का सफ़र राएगाँ गया
क़िस्सा-ए-हस्त-ओ-बूद मेरा बेबयां गया
मेरा उम्र भर का सफ़र राएगाँ गया
मन्ज़िल थी सामने रसता भी साफ़ था
फिर भी न उस समत मेरा कारवां गया
तेरी जुस्तजू में जाना भटका हूं दर-ब-दर
मायूसी हाथ आई मैं चाहे जहां गया
तुम न थे साथ फिर भी तन्हा नहीं रहा
तेरा अक्स साथ आया मैं जहां जहां गया
दुश्मन को भी न मैने
कभी बददुआएं
दीं
फिर क्या हुआ कि दुश्मन हो आस्मां गया
मैने न जाने कितने हवाई क़ले बनाये
लेकिन यहां ज़मीं पर मैं ला-मकां गया