मेरा वुजूद तो है पर अब इस का मानी1 क्या है
सांसें तो चलती है मग़र जीने की निशानी क्या है
गुमशुदगी में जीते
जाना आसान भी नहीं
मौजूदा ज़िंदगी की कोई
इक पहचान ही नहीं
ठहरे हुए पानी के इक
तालाब सी लगती है
जहाँ भी देखें
काई की इक
चादर दिखती है
कभी कभार कोई मछली मेंढक दिख जाते हैं
ड्रैगन फ्लाई के झुंड
और बगुले आते
जाते हैं
औरो के लिए जा-ए-क़ियाम2 और मोदीख़ाना हूं
खुद से नावाक़िफ़
हूं और अपनों
से बेगाना हूं
फिर और किसी
रोज़ ज़िन्दगी ट्रेडमिल
हो जाती है
कहीं पहुंचाती नहीं बस
दौड़ाए ही जाती
है
इसके इस्तेमाल में चौकसी
लाज़मी होती है
लापरवाही अमूमन3
हादसा करवा देती है
हर पल अनचाही
अनहोनी का खौफ
सताता है
मामूली सी खराबी
पर भी दिल
घबरा जाता है
कभी कभी लगता
है कि मैं
इक मील का
पत्थर हूं
गाड़ा गया था जहां मुझको
मैं अब भी वहीं पर हूं
मैं बेजान हूं मैं
चल फिर हिल डुल भी नहीं सकता
नाबीना4
हूं बहरा हूं मुंह भी खुल ही नहीं सकता
मगर मैं सारे नज़ारों
को सुन और देख पाता हूं
सारे कुदरती अनासिर5
को सहता हूं झेले जाता हूं
धूल और मिट्टी में
लिथड़े रहना मेरी क़िस्मत है
चुपचाप सारे ज़ुल्म-ओ-सितम
सहना मेरी फ़ितरत6 है
इब्तिदा7
क्या थी मेरी जानना चाहा है कितनी बार
क्या मेरे भी थे कोई
मां बाप संगी साथी दोस्त यार
कहाँ हैं क्या करते
हैं उनकी सूरत-ए-हाल8 क्या है
मगर किसी से
पूछ सकूं मैं
मेरी मजाल क्या
है
पत्थर ही बनना था जब
क्यों मील पत्त्थर ही बना
शालीग्राम तो क्या
न ही संग-ए-मर मर भी बना
गर सुनें ब्रह्मा तो
उन से पूछना चाहूंगा मैं
कितने माह-ओ-साल9 में फ़ारिग़ हो पाऊंगा
मैं
Glossary:
ख़ुद-शनासी: identifying oneself)