वोह जो ख़ुद को ख़ुदा समझता है
मैंने उस संग1 को तराशा
था
शक्ल-ओ-सूरत है जिस पे नाज़ां2
वोह
मेरे हाथों का वोह करिश्मा3
थे
रूप और रंग सलीका4 और शु'ऊर5
नाज़ अंदाज़ बांकपन शोख़ी6
उस में गुण आए मेरे उद्यम7
से
वोह तो इक रास्ते का पत्थर था
सुन न सकता न बोल सकता था
सूँघ सकता न देख सकता था
उसको महसूस कुछ न होता था
जाने कब से पड़ा हुआ था वहां
कोई उसकी तरफ न तकता था
ठोकरें खाता और खिलाता था
राहगीरों से कोसा जाता था
धूल मिट्टी में लिथड़ा रहता था
रात दिन सर्दी गर्मी खुश्की नमी
धूप बरसात आंधी तूफ़ान
सारे कुदरत के ज़ुल्म सहता था
मन में क्या आया एक दिन जाने
अपने घर लाया मैं उठा उसको
अच्छे से झाड़ा पोंछा साफ़ किया
फिर गंगा जल से उसको नहलाया
प्यार से ध्यान से लगन के साथ
धीरे धीरे उसे तराश8 दिया
एक चमत्कार हो गया जैसे
मेरी रचना बहुत ही सुन्दर थी
पुण्य पाषाण शिलाँश शालिग्राम
कितने सारे दे डाले नाम उसको
एक ही नाम भा गया मुझको
पुण्यपाषाण बुलाने उसको लगा
दिल से मेरे प्रार्थना निकली
काश इस बुत में जान आ जाए
पांच की पांच इन्दरीयों में
ज़िन्दगी का निशान आ जाए
एक मीठी सुरीली किलकारी9
कानों में आ घुला गई मिशरी
रंग ले आई प्रार्थना मेरी
सच में थी वोह मूर्ति जी उठी
एक नन्हे शिशु का रूप धरी
मेरी खुशियों की इंतिहा10
न रही
आँखों से अश्रु धारा बह निकली
ख़ुशी के आंसू बहाते हुए
कांपते और लड़खड़ाते हुए
आगे बढ़ कर उठा लिया उसको
कस के उसने पकड़ लिया मुझको
एक मंज़िल मेरे मुक़ाबिल11 थी
परवरिश उसकी मुझको करनी थी
खुद से वादा करा लिया मैंने
इसका ज़िम्मा उठा लिया मैंने
इसको अपना ही फ़र्ज़ मान लिया
और उसको निभा भी पाया मैं
बड़े प्यार और दुलार से पाला
किसी शय की कमी न होने दी
मांग से पेशतर12 मुयस्सर13
की
सभ्यता और संस्कार दिए
रस्मी शिक्षा के साथ ही उसने
जाने माने गुरु की किरपा से
कला कौशल अनेकों सीख लिए
दिव्य मानव सरीखा बन गया वोह
हर किसी मन को मोह लेता वोह
मस्त हो रहता देखने वाला
ज़िन्दगी को कहां है ले जाना
फैसला सारा उस पे छोड़ दिया
कहीं भी आने और जाने की
मन मुताबिक जो चाहे करने की
पूरी आज़ादी दे दी थी उसको
कोई बंधन न लागू था उस पर
किसी आशा का कोई भार नहीं
अपनी अक़्ल और तजुर्बे से हासिल
दिशा निर्देश और सुझाव दिए
कट रही थी मज़े से दोनों की
एक दूजे का हम सहारा थे
एक दिन जाने क्या हुआ उसको
वोह गया और पलट नहीं आया
कोई सन्देश भी न छोड़ गया
कहाँ जा कर उसे तलाश करूं
किससे पूछूं अता पता उसका
इन सवालों से भी कहीं बढ़ कर
कष्ट और इक सवाल देता रहा
ऐसी क्या थी हुई खता14
मुझसे
जिसके चलते वोह ऐसे रूठ गया
न मिला वोह और न कोई जवाब
बेबसी सादगी व लाचारी
रहीं दिल को कचोटतीं मेरे
लम्बे अरसे तलक मलाल15
रहा
खुद को मुजरिम ही मैं समझता रहा
एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद
मैंने खुद को मुआफ कर डाला
एक महफ़िल में मेरा जाना हुआ
पुण्यपाषाण वहां नज़र आया
हर्ष उल्लास पीड़ा पशचाताप
भावनाए उमड़ पड़ीं सारी
फिर दिखाई पड़ा अजब मन्ज़र16
उसकी ख़ातिर सजी थी वोह महफ़िल
लोग उसके लिए ही आए थे
मिल रहे थे उसे तपाक17
के साथ
वोह भी मान दे रहा था उन्हें
इस समय क्या करूं कहां जाऊं
उसको मिलने मैं जाऊं या कि नहीं
ठीक से कुछ समझ न आ रहा था
देर तक दो दिली में उलझा रहा
मन को साधा चला गया वहां पर
उसके सम्मुख18 यूँ ही खड़ा
हो रहा
इस गरज़ से कि मैं उसे दिख जाऊं
वोह आ कर के बात चीत करे
आपबीती बताए मेरी सुने
मेरी चाहत को उसने भांप लिया
बोला आकर बड़ी विनम्रता से
आप आए है खुश तो हूँ मैं बहुत
सिर झुका कर नमन मैं करता हूँ
पर क्षमा याचना भी करता हूँ
मुझ को तो याद आ रहा नहीं कुछ
आज से पहले भी कहीं मिले हों
कुछ न बोला मैं सुन कर उससे यह
जोड़ कर हाथ बस निकल आया
छटपटाता रहा बहुत दिनों तक
एक शंका ने मुझको घेर लिया
पुण्यपाषाण क़्या मेरा भ्रम तो नहीँ
मन में पैदा हुआ अजब सा विचार
वोह तो कोई मनुष्य ही नहीँ है
देव सुर अथवा यक्ष है कोई
शाप से बन गया जो पाषाण था
मेरे हाथों मिली थी मुक्ति उसे
मैं ही था जिसने था उबारा उसे
फिर अचानक अँधेरा दूर हुआ
मन में जैसे उजाला भर गया हो
मुझको भी कोई श्राप19 ही
मिला था
इस वजह ही से वोह भूल गया
चाह कर भी भुला नहीं पाता
हर समय सोचता ही रहता हूँ
मैंने क्यों संग वोह तराशा था
Glossary
1. संग: Stone
2. नाज़ां: Proud
3. करिश्मा Miracle
4. सलीका:
Disposition, skill
5. शु'ऊर: discernment
6. शोख़ी::
coquetry, playfulness
7. उद्यम::effort
8. तराश: Sculpt
9. किलकारी:
Chuckle, laugh-like cry of an infant
10. इंतिहा::extreme,
end limit
11. मुक़ाबिल: right in front
12. पेशतर: Before
13. मुयस्सर:
available, ready
13. खता: fault,
mistake
15. मलाल: Grief,
sorrow
16. मन्ज़र: a
sight, a show, a spectacle
17. तपाक:
cordiality
18. सम्मुख: in
front, facing
19: श्राप: Curse