November 19, 2025

महबूबा की जूठी बरफ़ी

 

जाना या अनजाना कोई भी तारीफ़ करे

मन को भाता जी को अच्छा लगता है

झूठी है सच्ची है इस से ग़रज़1 नहीं  है

करने वाले की नीयत का पता चलता है

झूठी हो तारीफ़ तो और मज़ा देती है

महबूबा की जूठी बरफ़ी के जैसी

झूठी ख़बर बदनामी बेतुकी2 राय-ज़नी3

सारे  ही तारीफों के अलग से तरीके हैं

खुल कर की गई प्रशंसा से ख़ुशी मिलती है

कुछ न कहा जाए तो भी दुःख नहीं होता है

 बेरुखी4 से लेकिन बड़ी दिक्कत होती है

जलती है आग सी दिल में रंजबहुत होता है

जब अपना साथी समझा किए हम जिसको

पेश आता है हमीं से गैरों की तरह 

अनदेखा करता है जब वोह देख हमें

मुंह को अपने फेरे हुए चला जाता है

नज़रें बदलते ही मन भी बदल ही जाता है

आँखों से ओझल को हर कोई भुला देता है

चुनांचे चाहे जितनी भी रुसवाई6 हो

कुछ मोटी चमड़ी वाले राजा बाबू

मां के लाडले प्यारे दुलारे बिगड़े दिल

पुश्तैनी7 शहज़ादे हारा नहीं करते

जनता की नज़रों से ओझल ही नहीं होते

चमचों की उकसाहट से डटे ही रहते हैं

ये भी शायद अपना धर्म निभाते हैं

फल की चिंता नहीं बस कर्म ही करते हैं

इनकी शान में जो भी कहो कम होता है

ये पूजा करने योग्य हैं इनको नमन है 

Glossary:

1. ग़रज़: Concern

2. बेतुकी: Inappropriate, unreasoable

3. राय-ज़नी: Criticism

4. बेरुखी: indifference, ignorance

5. रंज: pain, sorrow

6. रुसवाई: infamy, disgrace, ignominy 

7. पुश्तैनी: hereditary