जाना या अनजाना कोई
भी तारीफ़ करे
मन को भाता जी को अच्छा
लगता है
झूठी है सच्ची है इस से ग़रज़1 नहीं है
करने वाले की नीयत
का पता चलता है
झूठी हो तारीफ़ तो और मज़ा देती है
महबूबा की जूठी बरफ़ी
के जैसी
झूठी ख़बर बदनामी बेतुकी2 राय-ज़नी3
सारे ही तारीफों के अलग से तरीके हैं
खुल कर की गई प्रशंसा से ख़ुशी मिलती है
कुछ न कहा जाए तो भी
दुःख नहीं होता है
बेरुखी4 से लेकिन बड़ी दिक्कत होती है
जलती है आग सी दिल में रंज5 बहुत होता है
जब अपना साथी समझा किए हम जिसको
पेश आता है हमीं से गैरों की तरह
अनदेखा करता है जब वोह देख हमें
मुंह को अपने फेरे
हुए चला जाता है
नज़रें बदलते ही मन भी बदल ही जाता है
आँखों से ओझल को हर कोई भुला देता है
चुनांचे चाहे जितनी भी रुसवाई6 हो
कुछ मोटी चमड़ी वाले राजा बाबू
मां के लाडले प्यारे
दुलारे बिगड़े दिल
पुश्तैनी7 शहज़ादे हारा नहीं करते
जनता की नज़रों से ओझल
ही नहीं होते
चमचों की उकसाहट से
डटे ही रहते हैं
ये भी शायद अपना धर्म निभाते हैं
फल की चिंता नहीं बस कर्म ही करते हैं
इनकी शान में जो भी
कहो कम होता है
ये पूजा
करने योग्य हैं
Glossary:
1. ग़रज़:
Concern
2. बेतुकी:
Inappropriate, unreasoable
3. राय-ज़नी:
Criticism
4. बेरुखी:
indifference, ignorance
5. रंज: pain,
sorrow
6. रुसवाई:
infamy, disgrace, ignominy
7. पुश्तैनी:
hereditary