याद इक शोख़ की
याद इक शोख़1 की शाम-ओ-सहर2 आती है
ज़िन्दगी गोया3 कुछ दम को ठहर जाती है
सांस रुकती औ थमती है दिल की धड़क
सारी हसती की तरतीब4 बिखर जाती है
एक बस एक ही मन्ज़र5 दिखाई देता है
उसकी तसवीर चहुं ओर नज़र आती है
दिल के सहरा6 में रवां7 होती है ठंडी हवा
साहिल-ए-वीरान8 पे मौज-ए-बहर9 आती है
फूल खिलते हैं तसव्वुर10 में आती है बहार
बू-ए-खुश11 उनकी हर सिमत12 बिखर जाती है
2. शाम-ओ-सहर: Evening and Morning - Dusk & Dawn
3. गोया : As if
4. तरतीब: arrangement , order
5. मन्ज़र: A scene / view
6. सहरा: desert
7. रवां: flowing
8.साहिल-ए-वीरान: desolate shore
9. मौज-ए-बहर: sea wave
10. तसव्वुर: imagination
11. बू-ए-खुश: खुशबू fragrance
12. सिमत: direction
This is the poem I had referred to in my previous post. I had mentioned that a long time ago, two lines had suddenly popped up in my mind and I had not been able to dilate the same. The original lines were as follows
याद इक शख्स की मुझे शाम-ओ-सहर आती है
वीरान ज़खीरे पर कोई मौज-ए-बहर आती है
Though I fortuitously got the inspiration enabling me to revise and expand on the above lines, I had digressed and had restricted the previous post to only include the article titled 'Sundar Mudriye Ho'.
1 comment:
Wow. Exquisite
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