September 4, 2025

बुढ़ापा सीली लकड़ी है

 

बुढ़ाते जिस्मों की फ़ितरत1

बहुत कुछ यूँ बदलती है 

निकलता पानी धीरे से

हवा फर फर निकलती है

जवानी है बुलट गाड़ी

हवा से बात करती है

बुढ़ापा माल गाड़ी है

ज़रा रुक रुक के चलती है

जवानी सूखी लकड़ी है

पकड़ती आग है फ़ौरन

बुढ़ापा सीली लकड़ी है

जतन के बाद जलती है

छतों को ताकते हैं बस

सितारे गिन नहीं पाते

सुहानी रात या काली

बहुत मुश्किल से ढलती है

सरों से बाल हैं झड़ते

गढ़े आँखों में पड़ते हैं

विवश हो दांत भी सारे

लगाने नकली पड़ते है

कभी तो कान दुखते है

सुनाई कम ही देता है

कभी आँखों में धुँधला-पन

दिखाई कम ही देता है

कभी नज़ला है लग जाता

कभी छाती भी जलती है

सलाहें देते हैं अक्सर

सभी को यह बिना पूछे

दख़ल अंदाज़ी2 लगती है

यह आदत सब को खलती है

जो चलते राह कोई लड़की

गिरा दे मार कर कन्धा

कहेंगे सब तमाशाई

इसी बूढ़े की ग़ल्ति है

मगर यह भी तो सच ही है

रहे सारी उमर आशिक़

जो देखें मोहनी सूरत

तबीयत उठ मचलती है

 Glossary:

1. फ़ितरत:  Nature, disposition

2. दख़ल अंदाज़ी: Interference


1 comment:

Anonymous said...

Excellent. Superb - yakhmi