December 1, 2025

अच्छा लगता है हाथी का लक़ब

 

कुछ प्रेमी हैं मेरे बड़े ही खैरख़्वाह1 हैं

उनको लगता है वो जानते है मुझको

 उनकी फितरत2 से मैं तो वाक़िफ़ हूं

भरी दिल में मेरे तईं खुन्नस3 है

 फिर भी दावा तो ह ही किया करते हैं

कि भला ही मेरा वो चाहा करते हैं

 

मुझ को हाथी का लक़ब4 दिया है उन ने

मेरा हर ज़िक्र इसी नाम से होता है

 यह जान मुझे थोड़ी उत्सुकता5 हुई

इस नाम को चुनने का मंतिक़6 क्या था

 फिर अचानक  मुझ को यह एहसास हुआ

हाथी की उपाधि7 मेरे लिए सही है


कई  खामियां8  हाथी की  हैं मेरे अंदर

दिखने लगी है बड़ी सी अब तोंद मेरी

आँखें मेरी  कमज़ोर बहुत हो गईं हैं

 नकली लगे हैं अब तो सभी दांत मेरे

खाने के कम हैं दिखाने के ज़्यादा

 आसानी से उठ बैठ नहीं सकता

चल फिर सकता हूं बड़ी ही मुश्किल से

 चूँकि मुझें पूँछ नहीँ दी  विधाता ने

दुम को हिला के हाँ कहा नहीँ कभी  मैंने

 अपनी मर्ज़ी करता  हूं निरंकुश9  हूं


हाथी की खूबियां भी है कई मेरे में

 स्मरण शक्ति है अच्छी अभी तक मेरी

हर आवाज़ सुन सकते हैं कान मेरे

 कभी यकदम सूंड  बन उठती है क़लम मेरी

हमलावर को उठा कर इससे दे पटकता हूँ

 

जब भी  जाता हूँ  मैं  बाग़ीचे में

हव्वा बने फिरते हैं जो रंगे सियार10

मिलकर  पाले हुए कुत्तों पिल्लों के साथ

डरे सहमे दूर ही दूर से देखते है

 भभकी देते है  चिल पुं 11  मचाते है

मस्ती में इतराता चला जाता हूं मैं

 

अच्छा ही लगता है जब कुछ लोग मुझे

हाथी कहते भी हैं और  समझते भी

 

 Glossary

1. खैरख़्वाह: Well-wisher

2. फितरत: Nature

3. खुन्नस: ill-will, envy

4. लक़ब: Nickname

5. उत्सुकता: Curiosity

6.मंतिक़: Logic, reasoning

7. उपाधि: title

8.खामियां : short-comings

9. निरंकुश : uncontrolled, autocratic

10. सियार: Jackal

11. चिल पुं: mournful hue and cry


November 19, 2025

महबूबा की जूठी बरफ़ी

 

जाना या अनजाना कोई भी तारीफ़ करे

मन को भाता जी को अच्छा लगता है

झूठी है सच्ची है इस से ग़रज़1 नहीं  है

करने वाले की नीयत का पता चलता है

झूठी हो तारीफ़ तो और मज़ा देती है

महबूबा की जूठी बरफ़ी के जैसी

झूठी ख़बर बदनामी बेतुकी2 राय-ज़नी3

सारे  ही तारीफों के अलग से तरीके हैं

खुल कर की गई प्रशंसा से ख़ुशी मिलती है

कुछ न कहा जाए तो भी दुःख नहीं होता है

 बेरुखी4 से लेकिन बड़ी दिक्कत होती है

जलती है आग सी दिल में रंजबहुत होता है

जब अपना साथी समझा किए हम जिसको

पेश आता है हमीं से गैरों की तरह 

अनदेखा करता है जब वोह देख हमें

मुंह को अपने फेरे हुए चला जाता है

नज़रें बदलते ही मन भी बदल ही जाता है

आँखों से ओझल को हर कोई भुला देता है

चुनांचे चाहे जितनी भी रुसवाई6 हो

कुछ मोटी चमड़ी वाले राजा बाबू

मां के लाडले प्यारे दुलारे बिगड़े दिल

पुश्तैनी7 शहज़ादे हारा नहीं करते

जनता की नज़रों से ओझल ही नहीं होते

चमचों की उकसाहट से डटे ही रहते हैं

ये भी शायद अपना धर्म निभाते हैं

फल की चिंता नहीं बस कर्म ही करते हैं

इनकी शान में जो भी कहो कम होता है

ये पूजा करने योग्य हैं इनको नमन है 

Glossary:

1. ग़रज़: Concern

2. बेतुकी: Inappropriate, unreasoable

3. राय-ज़नी: Criticism

4. बेरुखी: indifference, ignorance

5. रंज: pain, sorrow

6. रुसवाई: infamy, disgrace, ignominy 

7. पुश्तैनी: hereditary

September 4, 2025

बुढ़ापा सीली लकड़ी है

 

बुढ़ाते जिस्मों की फ़ितरत1

बहुत कुछ यूँ बदलती है 

निकलता पानी धीरे से

हवा फर फर निकलती है

जवानी है बुलट गाड़ी

हवा से बात करती है

बुढ़ापा माल गाड़ी है

ज़रा रुक रुक के चलती है

जवानी सूखी लकड़ी है

पकड़ती आग है फ़ौरन

बुढ़ापा सीली लकड़ी है

जतन के बाद जलती है

छतों को ताकते हैं बस

सितारे गिन नहीं पाते

सुहानी रात या काली

बहुत मुश्किल से ढलती है

सरों से बाल हैं झड़ते

गढ़े आँखों में पड़ते हैं

विवश हो दांत भी सारे

लगाने नकली पड़ते है

कभी तो कान दुखते है

सुनाई कम ही देता है

कभी आँखों में धुँधला-पन

दिखाई कम ही देता है

कभी नज़ला है लग जाता

कभी छाती भी जलती है

सलाहें देते हैं अक्सर

सभी को यह बिना पूछे

दख़ल अंदाज़ी2 लगती है

यह आदत सब को खलती है

जो चलते राह कोई लड़की

गिरा दे मार कर कन्धा

कहेंगे सब तमाशाई

इसी बूढ़े की ग़ल्ति है

मगर यह भी तो सच ही है

रहे सारी उमर आशिक़

जो देखें मोहनी सूरत

तबीयत उठ मचलती है

 Glossary:

1. फ़ितरत:  Nature, disposition

2. दख़ल अंदाज़ी: Interference


August 24, 2025

बेकार मसरूफ़

इन दिनों कुछ भी नहीं करता हूँ मैं

फिर भी मसरूफ़1  बहुत रहता हूं

याद बीते दिनों को करता हू

यादों के कूचों2 में घूम आता हूँ

हैरती3  चीज़ें वां4 पे पाता हूं

जादू का खेल हो कोई जैसे

एक दिन देखने में आता है

गली कूचे सभी सूने वीरान

कोई आहट नहीं आवाज़ नहीं

एक भी चेहरा नहीं है दिखता

फिर किसी दिन सब उलट जाता है

अनगिनत चेहरे नज़र आते हैं

कई आवाज़ें मगज़ खाती हैं

कोई मक़सद5 कोई उम्मीद नहीं

फिर भी जाता हूँ हर इक रोज़ वहीं

अपनी नाकामियों पर रंज6 औ मलाल7

और नादानियों8 पर पछतावा

मुझे मशगूल9 किए रखते हैं

इस मशक्कत10 से नहीं कुछ मिलता

फिर भी मैं इसको किए जाता हूँ

न कोई लुत्फ़11 रहा और न मज़ा

फिर भी ज़िंदा हूँ जिए जाता हूँ

ज़िन्दगी ज़हर या कि अमृत है

हो के बेफ़िक्र पिए जाता हूँ

 

1. मसरूफ: Busy

2. कूचों: Streets

3. हैरती: Amazing, strange

4. वां: There

5. मक़सद: Aim

6. रंज: Sorrow, grief

7. मलाल: anguish

8. नादानियों: ignorance, foolishness

9. मशगूल: busy, engaged

10. मशक्कत: exercise, labour

11. लुत्फ़: enjoyment

June 4, 2025

शापित(Accursed)

वोह जो ख़ुद को ख़ुदा समझता है

मैंने उस संग1 को तराशा था

शक्ल-ओ-सूरत है जिस पे नाज़ां2 वोह

मेरे हाथों का वोह करिश्मा3 थे

रूप और रंग सलीका4 और शु'ऊर5

नाज़ अंदाज़ बांकपन शोख़ी6

उस में गुण​ आए मेरे उद्यम7 से

वोह तो इक रास्ते का पत्थर था

सुन न सकता न बोल सकता था

सूँघ सकता न देख सकता था

उसको महसूस कुछ न होता था

जाने कब से पड़ा हुआ था वहां

कोई उसकी तरफ न तकता था

ठोकरें खाता और खिलाता था

राहगीरों से कोसा जाता था

धूल मिट्टी में लिथड़ा रहता था

रात दिन सर्दी गर्मी खुश्की नमी

धूप बरसात आंधी तूफ़ान

सारे कुदरत के ज़ुल्म सहता था

मन में क्या आया एक दिन जाने

अपने घर लाया मैं उठा उसको

अच्छे से झाड़ा पोंछा साफ़ किया

फिर गंगा जल से उसको नहलाया

प्यार से ध्यान से लगन के साथ

धीरे धीरे उसे तराश8 दिया

एक चमत्कार हो गया जैसे

मेरी रचना बहुत ही सुन्दर थी

पुण्य पाषाण शिलाँश शालिग्राम

कितने सारे दे डाले नाम उसको

एक ही नाम भा गया मुझको

पुण्यपाषाण बुलाने उसको लगा

दिल से मेरे प्रार्थना निकली

काश इस बुत में जान आ जाए

पांच की पांच इन्दरीयों में

ज़िन्दगी का निशान आ जाए

एक मीठी सुरीली किलकारी9

कानों में आ घुला गई मिशरी

रंग ले आई प्रार्थना मेरी

सच में थी वोह मूर्ति जी उठी

एक नन्हे शिशु का रूप धरी

मेरी खुशियों की इंतिहा10 न रही

आँखों से अश्रु धारा बह निकली

ख़ुशी के आंसू बहाते हुए

कांपते और लड़खड़ाते हुए

आगे बढ़ कर उठा लिया उसको

कस के उसने पकड़ लिया मुझको

एक मंज़िल मेरे मुक़ाबिल11 थी

परवरिश उसकी मुझको करनी थी

खुद से वादा करा लिया मैंने

इसका ज़िम्मा उठा लिया मैंने

इसको अपना ही फ़र्ज़ मान लिया

और उसको निभा भी पाया मैं

बड़े प्यार और दुलार से पाला

किसी शय की कमी न होने दी

मांग से पेशतर12 मुयस्सर13 की

सभ्यता और संस्कार दिए

रस्मी शिक्षा के साथ ही उसने

जाने माने गुरु की किरपा से

कला कौशल अनेकों सीख लिए

दिव्य मानव सरीखा बन गया वोह

हर किसी मन को मोह लेता वोह

मस्त हो रहता देखने वाला

ज़िन्दगी को कहां है ले जाना

फैसला सारा उस पे छोड़ दिया

कहीं भी आने और जाने की

मन मुताबिक जो चाहे करने की

पूरी आज़ादी दे दी थी उसको

कोई बंधन न लागू था उस पर

किसी आशा का कोई भार नहीं

अपनी अक़्ल और तजुर्बे से हासिल

दिशा निर्देश और सुझाव दिए

कट रही थी मज़े से दोनों की

एक दूजे का हम सहारा थे

एक दिन जाने क्या हुआ उसको

वोह गया और पलट नहीं आया

कोई सन्देश भी न छोड़ गया

कहाँ जा कर उसे तलाश करूं

किससे पूछूं अता पता उसका

इन सवालों से भी कहीं बढ़ कर

कष्ट और इक सवाल देता रहा

ऐसी क्या थी हुई खता14 मुझसे

जिसके चलते वोह ऐसे रूठ गया

न मिला वोह और न कोई जवाब

बेबसी सादगी व लाचारी

रहीं दिल को कचोटतीं मेरे

लम्बे अरसे तलक मलाल15 रहा

खुद को मुजरिम ही मैं समझता रहा

एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद

मैंने खुद को मुआफ कर डाला

एक महफ़िल में मेरा जाना हुआ

पुण्यपाषाण वहां नज़र आया

हर्ष उल्लास पीड़ा पशचाताप

भावनाए उमड़ पड़ीं सारी

फिर दिखाई पड़ा अजब मन्ज़र16

उसकी ख़ातिर सजी थी वोह महफ़िल

लोग उसके लिए ही आए थे

मिल रहे थे उसे तपाक17 के साथ

वोह भी मान दे रहा था उन्हें

इस समय क्या करूं कहां जाऊं

उसको मिलने मैं जाऊं या कि नहीं

ठीक से कुछ समझ न आ रहा था

देर तक दो दिली में उलझा रहा

मन को साधा चला गया वहां पर

उसके सम्मुख18 यूँ ही खड़ा हो रहा

इस गरज़ से कि मैं उसे दिख जाऊं

वोह आ कर के बात चीत करे

आपबीती बताए मेरी सुने

मेरी चाहत को उसने भांप लिया

बोला आकर बड़ी विनम्रता से

आप आए है खुश तो हूँ मैं बहुत

सिर झुका कर नमन मैं करता हूँ

पर क्षमा याचना भी करता हूँ

मुझ को तो याद आ रहा नहीं कुछ

आज से पहले भी कहीं मिले हों

कुछ न बोला मैं सुन कर उससे यह

जोड़ कर हाथ बस निकल आया

छटपटाता रहा बहुत दिनों तक

मैं रहा कोसता ही किस्मत को

एक शंका ने मुझको घेर लिया

पुण्यपाषाण क़्या मेरा भ्रम तो नहीँ

मन में पैदा हुआ अजब सा विचार

वोह तो कोई मनुष्य ही नहीँ है

देव सुर अथवा यक्ष है कोई

शाप से बन गया जो पाषाण था

मेरे हाथों मिली थी मुक्ति उसे

मैं ही था जिसने था उबारा उसे

फिर अचानक अँधेरा दूर हुआ

मन में जैसे उजाला भर गया हो

मुझको भी कोई श्राप19 ही मिला था

इस वजह ही से वोह भूल गया

चाह कर भी भुला नहीं पाता

हर समय सोचता ही रहता हूँ

मैंने क्यों संग वोह तराशा था


Glossary

1. संग: Stone

2. नाज़ां: Proud

3. करिश्मा Miracle

4. सलीका: Disposition, skill

5. शु'ऊर: discernment

6. शोख़ी:: coquetry, playfulness

7. उद्यम​::effort

8. तराश: Sculpt

9. किलकारी: Chuckle, laugh-like cry of an infant

10. इंतिहा::extreme, end limit

11. मुक़ाबिल: right in front

12. पेशतर: Before

13. मुयस्सर: available, ready

13. खता: fault, mistake

15. मलाल: Grief, sorrow

16. मन्ज़र: a sight, a show, a spectacle

17. तपाक: cordiality

18. सम्मुख: in front, facing

19: श्राप: Curse