June 4, 2025

शापित(Accursed)

वोह जो ख़ुद को ख़ुदा समझता है

मैंने उस संग1 को तराशा था

शक्ल-ओ-सूरत है जिस पे नाज़ां2 वोह

मेरे हाथों का वोह करिश्मा3 थे

रूप और रंग सलीका4 और शु'ऊर5

नाज़ अंदाज़ बांकपन शोख़ी6

उस में गुण​ आए मेरे उद्यम7 से

वोह तो इक रास्ते का पत्थर था

सुन न सकता न बोल सकता था

सूँघ सकता न देख सकता था

उसको महसूस कुछ न होता था

जाने कब से पड़ा हुआ था वहां

कोई उसकी तरफ न तकता था

ठोकरें खाता और खिलाता था

राहगीरों से कोसा जाता था

धूल मिट्टी में लिथड़ा रहता था

रात दिन सर्दी गर्मी खुश्की नमी

धूप बरसात आंधी तूफ़ान

सारे कुदरत के ज़ुल्म सहता था

मन में क्या आया एक दिन जाने

अपने घर लाया मैं उठा उसको

अच्छे से झाड़ा पोंछा साफ़ किया

फिर गंगा जल से उसको नहलाया

प्यार से ध्यान से लगन के साथ

धीरे धीरे उसे तराश8 दिया

एक चमत्कार हो गया जैसे

मेरी रचना बहुत ही सुन्दर थी

पुण्य पाषाण शिलाँश शालिग्राम

कितने सारे दे डाले नाम उसको

एक ही नाम भा गया मुझको

पुण्यपाषाण बुलाने उसको लगा

दिल से मेरे प्रार्थना निकली

काश इस बुत में जान आ जाए

पांच की पांच इन्दरीयों में

ज़िन्दगी का निशान आ जाए

एक मीठी सुरीली किलकारी9

कानों में आ घुला गई मिशरी

रंग ले आई प्रार्थना मेरी

सच में थी वोह मूर्ति जी उठी

एक नन्हे शिशु का रूप धरी

मेरी खुशियों की इंतिहा10 न रही

आँखों से अश्रु धारा बह निकली

ख़ुशी के आंसू बहाते हुए

कांपते और लड़खड़ाते हुए

आगे बढ़ कर उठा लिया उसको

कस के उसने पकड़ लिया मुझको

एक मंज़िल मेरे मुक़ाबिल11 थी

परवरिश उसकी मुझको करनी थी

खुद से वादा करा लिया मैंने

इसका ज़िम्मा उठा लिया मैंने

इसको अपना ही फ़र्ज़ मान लिया

और उसको निभा भी पाया मैं

बड़े प्यार और दुलार से पाला

किसी शय की कमी न होने दी

मांग से पेशतर12 मुयस्सर13 की

सभ्यता और संस्कार दिए

रस्मी शिक्षा के साथ ही उसने

जाने माने गुरु की किरपा से

कला कौशल अनेकों सीख लिए

दिव्य मानव सरीखा बन गया वोह

हर किसी मन को मोह लेता वोह

मस्त हो रहता देखने वाला

ज़िन्दगी को कहां है ले जाना

फैसला सारा उस पे छोड़ दिया

कहीं भी आने और जाने की

मन मुताबिक जो चाहे करने की

पूरी आज़ादी दे दी थी उसको

कोई बंधन न लागू था उस पर

किसी आशा का कोई भार नहीं

अपनी अक़्ल और तजुर्बे से हासिल

दिशा निर्देश और सुझाव दिए

कट रही थी मज़े से दोनों की

एक दूजे का हम सहारा थे

एक दिन जाने क्या हुआ उसको

वोह गया और पलट नहीं आया

कोई सन्देश भी न छोड़ गया

कहाँ जा कर उसे तलाश करूं

किससे पूछूं अता पता उसका

इन सवालों से भी कहीं बढ़ कर

कष्ट और इक सवाल देता रहा

ऐसी क्या थी हुई खता14 मुझसे

जिसके चलते वोह ऐसे रूठ गया

न मिला वोह और न कोई जवाब

बेबसी सादगी व लाचारी

रहीं दिल को कचोटतीं मेरे

लम्बे अरसे तलक मलाल15 रहा

खुद को मुजरिम ही मैं समझता रहा

एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद

मैंने खुद को मुआफ कर डाला

एक महफ़िल में मेरा जाना हुआ

पुण्यपाषाण वहां नज़र आया

हर्ष उल्लास पीड़ा पशचाताप

भावनाए उमड़ पड़ीं सारी

फिर दिखाई पड़ा अजब मन्ज़र16

उसकी ख़ातिर सजी थी वोह महफ़िल

लोग उसके लिए ही आए थे

मिल रहे थे उसे तपाक17 के साथ

वोह भी मान दे रहा था उन्हें

इस समय क्या करूं कहां जाऊं

उसको मिलने मैं जाऊं या कि नहीं

ठीक से कुछ समझ न आ रहा था

देर तक दो दिली में उलझा रहा

मन को साधा चला गया वहां पर

उसके सम्मुख18 यूँ ही खड़ा हो रहा

इस गरज़ से कि मैं उसे दिख जाऊं

वोह आ कर के बात चीत करे

आपबीती बताए मेरी सुने

मेरी चाहत को उसने भांप लिया

बोला आकर बड़ी विनम्रता से

आप आए है खुश तो हूँ मैं बहुत

सिर झुका कर नमन मैं करता हूँ

पर क्षमा याचना भी करता हूँ

मुझ को तो याद आ रहा नहीं कुछ

आज से पहले भी कहीं मिले हों

कुछ न बोला मैं सुन कर उससे यह

जोड़ कर हाथ बस निकल आया

छटपटाता रहा बहुत दिनों तक

मैं रहा कोसता ही किस्मत को

एक शंका ने मुझको घेर लिया

पुण्यपाषाण क़्या मेरा भ्रम तो नहीँ

मन में पैदा हुआ अजब सा विचार

वोह तो कोई मनुष्य ही नहीँ है

देव सुर अथवा यक्ष है कोई

शाप से बन गया जो पाषाण था

मेरे हाथों मिली थी मुक्ति उसे

मैं ही था जिसने था उबारा उसे

फिर अचानक अँधेरा दूर हुआ

मन में जैसे उजाला भर गया हो

मुझको भी कोई श्राप19 ही मिला था

इस वजह ही से वोह भूल गया

चाह कर भी भुला नहीं पाता

हर समय सोचता ही रहता हूँ

मैंने क्यों संग वोह तराशा था


Glossary

1. संग: Stone

2. नाज़ां: Proud

3. करिश्मा Miracle

4. सलीका: Disposition, skill

5. शु'ऊर: discernment

6. शोख़ी:: coquetry, playfulness

7. उद्यम​::effort

8. तराश: Sculpt

9. किलकारी: Chuckle, laugh-like cry of an infant

10. इंतिहा::extreme, end limit

11. मुक़ाबिल: right in front

12. पेशतर: Before

13. मुयस्सर: available, ready

13. खता: fault, mistake

15. मलाल: Grief, sorrow

16. मन्ज़र: a sight, a show, a spectacle

17. तपाक: cordiality

18. सम्मुख: in front, facing

19: श्राप: Curse


April 28, 2025

अलविदा पारो

 

देवदास दिल में मेरे बसा हुआ है

मग़रूर1 हसीना पारो भी यहीं  है

मेरे अंदर का देवदास अभी ज़िंदा है

शायद इसलिए कि मैं अभी ज़िंदा हूं

या वोह ज़िंदा है तो मैं भी ज़िंदा हूं

उसे मेरी और मुझें उसकी ज़रूरत है

इसी कारण से हम दोनों अभी ज़िंदा हैं

मेरे अंदर का देवदास एक जज़्बा2 है

एक आरज़ू3 है ख्वाहिश4 है तमन्ना5 है

मीठी कड़वी यादों का मजमुआ6 है

इसे जिस्मानी7 शख़्सियत8 देता हूँ मैं

दिल के एक हिस्से पर इसका कब्ज़ा9 है

गुमसुम सा वहां पर यह पड़ा रहता है

बरसो हुए इस को शराब छोड़े हुए

अब यह पीने से गुरेज़10 करता है

बाज़-औक़ात11 आ जाता है जब हरकत में

आहें12 भरता है नाला13 किया करता है

याद पारो की शिद्दत14 से आती है

तब सीने में इक हूक15 लहर जाती है

एक-तरफ़ा16 मोहब्बत थी सौदाई17 की

इज़हार-ए-मुहब्बत18 कभी न इससे हुआ

अपने शैदाई19 का पारो को इल्म न था

इसलिए कभी भी इससे प्यार न था

उलट इसके बेरुखी और हक़ारत20 थी

फिर भी यह उसको भुला नहीं पाता

अब भी हद से ज़्यादा प्यार करता है

ज़िन्दगी के इन कुछ बक़ाया21 लम्हों में

देव दास की एक अंतिम इच्छा है

आ जाए पहन कर गुलाबी पहनावा

पारो नाज़-ओ-अदा22 से मुस्काते हुए

देवदास फूलों से इस्तिक़बाल23 करे

पेशानी24 चूमे और अलविदा25 कह दे


Glossary:


1. मग़रूर: haughty, vain, arrogant

2. जज़्बा: feeling, emotion, sentiment

3. आरज़ू : wish, desire, longing, yearning,

4. ख्वाहिश: desire, aspiration, wish,

5. तमन्ना: desire, longing, inclination

6. मजमुआ: Collection, compendium

7. जिस्मानी: Physical, bodily

8. शख़्सियत: personality, identity, personification

9. कब्ज़ा: possession, occupancy

10. गुरेज़: shunning, avoidance, evasion

11. बाज़-औक़ात: sometimes

12. आहें भरना: to grieve, express pain, regret

13. नाला करना: bemoan, lament

14. शिद्दत: intensity, vehemence

15. हूक: cry of pain, deep sigh

16. एक-तरफ़ा: one sided, unilateral

17. सौदाई: crazy, lovesick

18. इज़हार-ए-मुहब्बत: expression of love

19. शैदाई: infatuated wooer, obsessed lover / stalker

20. हक़ारत: contempt, scorn, disdain

21. बक़ाया: remaining

22. नाज़-ओ-अदा: graces, coquetry and style

23. इस्तिक़बाल: welcome, reception

24. पेशानी: forehead

25. अलविदा: good-bye, farewell, valediction

April 19, 2025

फ़ख़्र और डर

 

मेरी फ़ितरत1में ख़ुद-पसंदी2 है

ख़ुद ही अपने से प्यार करता हूँ 

अपने होने पे फख्र3 है मुझको

अपनी सीरत4 पे नाज़ करता हूँ

आग दिल में लगे रक़ीबों5 के 

कुछ कुछ ऐसा कर गुज़रता हूँ

शक्ल सूरत रही पहले सी

आइना देखने से डरता हूँ

गुल--नर्गिस6 हूँ बन गया जैसे

खुद को पहचानने से डरता हूँ

रात और दिन यूँ आते जाते रहें

बस यही इन्तिज़ार करता हूँ

 

1. फ़ितरत: Nature, disposition

2. ख़ुद-पसंदी: Self appreciation

3. फख्र: Pride

4. सीरत: Character, conduct, disposition

5. रक़ीब: Rival, Competitor

5. गुल-ए-नर्गिस: Narcissus flower


February 23, 2025

ख़ुद-शनासी

 

मेरा वुजूद तो है पर अब इस का मानी1 क्या है

सांसें तो चलती है मग़र जीने की निशानी क्या है

गुमशुदगी में जीते जाना आसान भी नहीं

मौजूदा ज़िंदगी की कोई इक पहचान ही नहीं

 

ठहरे हुए पानी के इक तालाब सी लगती है

जहाँ भी देखें काई की इक चादर दिखती है

कभी कभार कोई मछली मेंढक दिख जाते हैं

ड्रैगन फ्लाई के झुंड और बगुले आते जाते हैं

औरो के लिए जा--क़ियाम2  और मोदीख़ाना हूं

खुद से नावाक़िफ़ हूं और अपनों से बेगाना हूं

 

फिर और किसी रोज़ ज़िन्दगी ट्रेडमिल हो जाती है

कहीं पहुंचाती नहीं बस दौड़ाए ही जाती है

इसके इस्तेमाल में चौकसी लाज़मी होती है

लापरवाही अमूमन3 हादसा करवा देती है

हर पल अनचाही अनहोनी का खौफ सताता है

मामूली सी खराबी पर भी दिल घबरा जाता है

 

कभी कभी लगता है कि मैं इक मील का पत्थर हूं

गाड़ा गया था जहां मुझको मैं अब भी वहीं पर हूं

मैं बेजान हूं मैं चल फिर हिल डुल भी नहीं सकता

नाबीना4 हूं बहरा हूं मुंह भी खुल ही नहीं सकता

मगर मैं सारे नज़ारों को सुन और देख पाता हूं

सारे कुदरती अनासिर5 को सहता हूं झेले जाता हूं

धूल और मिट्टी में लिथड़े रहना मेरी क़िस्मत है

चुपचाप सारे ज़ुल्म-ओ-सितम सहना मेरी फ़ितरत6 है

इब्तिदा7 क्या थी मेरी जानना चाहा है कितनी बार

क्या मेरे भी थे कोई मां बाप संगी साथी दोस्त यार

कहाँ हैं क्या करते हैं उनकी सूरत-ए-हाल8 क्या है

मगर किसी से पूछ सकूं मैं मेरी मजाल क्या है

पत्थर ही बनना था जब क्यों मील पत्त्थर ही बना

शालीग्राम तो क्या न ही संग-ए-मर मर भी बना

गर सुनें ब्रह्मा तो उन से पूछना चाहूंगा मैं

कितने माह-ओ-साल9 में फ़ारिग़ हो पाऊंगा मैं

 

Glossary:

 ख़ुद-शनासी: identifying oneself)

1. मानी – meaning, purpose

2. जा-ए-क़ियाम- dwelling

3. अमूमन- Often

4. नाबीना- Blind ( without eyes)

5. कुदरती अनासिर – elements of nature

6. फ़ितरत- nature

7. इब्तिदा – Beginning / origin

8. सूरत-ए-हाल – present condition

9. माह-ओ-साल- months and years

10. फ़ारिग़ – free, absolved

February 13, 2025

उलझन

 ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात1 हैं अजब इन्तिशार2 रहता है

कोई आता जाता नहीं फिर भी किसी का इंतिज़ार रहता है

जिये जाने की चाह रही नहीं मरने का इरादा हुआ नहीं

कुछ करे या कुछ भी नहीं कश्मकश में दिल गिरफ़तार रहता है

हर चीज़ इक संगीन जुर्म लगती है हर शय पे शुबह3 होता है

ऐसे में औरों पे क्या खुद पे भी कहां ए'तिबार रहता है

गुज़रे दिनों की मीठी कड़वी यादों के तूफ़ान जब उमड़ते हैं

तब ज़िन्दगी की कश्ती पर​ अपना कहां इख़्तियार रहता है

एक लम्बा अर्सा गुज़र गया उससे तर्क-ए-त'अल्लुक़ात4 हुए

अब भी उस की ख़ातिर तड़पता है  यह दिल बेक़रार रहता है

खुशी और शादमानी5 के जिस दिल में कभी लगा करते थे बस मेले

वोह अब मायूसी में डूबा दुखी और सोगवार6 रहता है

Glossary

1. लम्हात : Moments, minutes 2 इन्तिशार: Confusion,

3. शुबह:Doubt, Suspicion 4. तर्क-ए-त'अल्लुक़ात: severing of relations

5. शादमानी: Rejoicing 6. सोगवार: lamenting