February 23, 2025

ख़ुद-शनासी

 

मेरा वुजूद तो है पर अब इस का मानी1 क्या है

सांसें तो चलती है मग़र जीने की निशानी क्या है

गुमशुदगी में जीते जाना आसान भी नहीं

मौजूदा ज़िंदगी की कोई इक पहचान ही नहीं

 

ठहरे हुए पानी के इक तालाब सी लगती है

जहाँ भी देखें काई की इक चादर दिखती है

कभी कभार कोई मछली मेंढक दिख जाते हैं

ड्रैगन फ्लाई के झुंड और बगुले आते जाते हैं

औरो के लिए जा--क़ियाम2  और मोदीख़ाना हूं

खुद से नावाक़िफ़ हूं और अपनों से बेगाना हूं

 

फिर और किसी रोज़ ज़िन्दगी ट्रेडमिल हो जाती है

कहीं पहुंचाती नहीं बस दौड़ाए ही जाती है

इसके इस्तेमाल में चौकसी लाज़मी होती है

लापरवाही अमूमन3 हादसा करवा देती है

हर पल अनचाही अनहोनी का खौफ सताता है

मामूली सी खराबी पर भी दिल घबरा जाता है

 

कभी कभी लगता है कि मैं इक मील का पत्थर हूं

गाड़ा गया था जहां मुझको मैं अब भी वहीं पर हूं

मैं बेजान हूं मैं चल फिर हिल डुल भी नहीं सकता

नाबीना4 हूं बहरा हूं मुंह भी खुल ही नहीं सकता

मगर मैं सारे नज़ारों को सुन और देख पाता हूं

सारे कुदरती अनासिर5 को सहता हूं झेले जाता हूं

धूल और मिट्टी में लिथड़े रहना मेरी क़िस्मत है

चुपचाप सारे ज़ुल्म-ओ-सितम सहना मेरी फ़ितरत6 है

इब्तिदा7 क्या थी मेरी जानना चाहा है कितनी बार

क्या मेरे भी थे कोई मां बाप संगी साथी दोस्त यार

कहाँ हैं क्या करते हैं उनकी सूरत-ए-हाल8 क्या है

मगर किसी से पूछ सकूं मैं मेरी मजाल क्या है

पत्थर ही बनना था जब क्यों मील पत्त्थर ही बना

शालीग्राम तो क्या न ही संग-ए-मर मर भी बना

गर सुनें ब्रह्मा तो उन से पूछना चाहूंगा मैं

कितने माह-ओ-साल9 में फ़ारिग़ हो पाऊंगा मैं

 

Glossary:

 ख़ुद-शनासी: identifying oneself)

1. मानी – meaning, purpose

2. जा-ए-क़ियाम- dwelling

3. अमूमन- Often

4. नाबीना- Blind ( without eyes)

5. कुदरती अनासिर – elements of nature

6. फ़ितरत- nature

7. इब्तिदा – Beginning / origin

8. सूरत-ए-हाल – present condition

9. माह-ओ-साल- months and years

10. फ़ारिग़ – free, absolved

February 13, 2025

उलझन

 ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात1 हैं अजब इन्तिशार2 रहता है

कोई आता जाता नहीं फिर भी किसी का इंतिज़ार रहता है

जिये जाने की चाह रही नहीं मरने का इरादा हुआ नहीं

कुछ करे या कुछ भी नहीं कश्मकश में दिल गिरफ़तार रहता है

हर चीज़ इक संगीन जुर्म लगती है हर शय पे शुबह3 होता है

ऐसे में औरों पे क्या खुद पे भी कहां ए'तिबार रहता है

गुज़रे दिनों की मीठी कड़वी यादों के तूफ़ान जब उमड़ते हैं

तब ज़िन्दगी की कश्ती पर​ अपना कहां इख़्तियार रहता है

एक लम्बा अर्सा गुज़र गया उससे तर्क-ए-त'अल्लुक़ात4 हुए

अब भी उस की ख़ातिर तड़पता है  यह दिल बेक़रार रहता है

खुशी और शादमानी5 के जिस दिल में कभी लगा करते थे बस मेले

वोह अब मायूसी में डूबा दुखी और सोगवार6 रहता है

Glossary

1. लम्हात : Moments, minutes 2 इन्तिशार: Confusion,

3. शुबह:Doubt, Suspicion 4. तर्क-ए-त'अल्लुक़ात: severing of relations

5. शादमानी: Rejoicing 6. सोगवार: lamenting